मेरे मुरलीधर हरिहर


 वेबवार्ता (न्यूज़ एजेंसी)/अजय कुमार वर्मा/ भागलपुर 29 अगस्त (बिहार) 

देखो मास भादों तिथि अष्टमी है आईं,

इस धरा पर जन्में थे जब श्री हरि।

क्या भयावह रात गहन काली अंधियारी, 

मुस्तेदी से जेल पर थी क्या खूब पहरेदारी।


कान्हा की मात देवकी, और बाबा वसुदेव पड़ गई,

 बड़ी सोच में कैसे बचाऊ कान्हा को।

अपने ही कुल के मामा कंश से बचाने को,

अंधेरी रात में निकल लिये सिर पर लिये पूत।


भयावह यमुना काली बिकट दहरी,

घनघोर घटा देखो बरसात रात घनेरी।

उसपर वाह क्या धोवन उछलते यमुना,

तब हरि हौले से पग डाल दिए यमुना में। 


खुसी खुशी वासुदेव पहुंचे नंद नगरी,

वाह क्या खूब मैया यशोदा की गोद भरी।

देखो न पलने लगे हरि नगरी वृंदावन में,

बाल लीला से सब को ओत प्रोत किए हरि।


तंग करे सबको माखन चुराये सखियन घर,

देखो न खूब गोप गोपियन संग मुरलीधर।

वृंदावन में धेनु चरावत बंशी बजावत,

क्या खूब संग बाल लीला करत हरी-हर।


वृंदावन में सखियों संग रास रचा कर

राधा संग में क्या खूब नेह लगाकर।

भिन्न भिन्न लीला अनेक किए बनवारी

वाह क्या खूब मुरली मधुर तान सुनाकर।


हरिहर के कृतार्थ हुई सदा मां यशोदा

मुंह में जो सम्पूर्ण ब्राहमाण्ड दिखाया।

हर प्राणी के देखो मन भावन दुलारे मोहन

जन्मों जन्मों के लिए कृत कृत हुवा वृंदावन।


जन्मोत्सव पर्व हर वर्ष मनाते हम प्राणी

हरि का आज सब मिल कर जन्माष्टमी।

हर घर आंगन हर्षोल्लास और खुशी से

घर घर करते बाल कृष्ण की पूजा आरती ।


माखन दूध मलाई भावे मेरे बाल हरिहर को

हरि को भोग लगाऊ ,झूले पर खूब झुलाऊ।

लोरी सुनाऊ, सुलाऊ न जा कृष्णा और कही

मन मंदिर में तू ही तू है और न कोई मेरे दिल मे.....






स्वरचित :  डॉ सुमन सोनी, वाइस प्रिंसिपल।