वरिष्ठ साहित्यकारों के नाम रही काव्य-रस गंगा की चौथी निशा


(वेबवार्तान्यूज़ एजेंसी)/अजय कुमार वर्मा
वाराणसी 18 मई। सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्था प्रमिला देवी फाउंडेशन की ओर से सोशल मीडिया के माध्यम से चलाए जा रहे ऑनलाइन काव्य-रस गोष्ठी की चौथी निशा वरिष्ठ साहित्यकारों के नाम रही। रविवार को काव्य-रस गोष्ठी के कार्यक्रम का शुभारंभ काशी के प्रख्यात साहित्यकार भैया जी बनारसी के सुपुत्र राजेन्द्र गुप्ता ने किया। उनकी रचना 'सारी दुनिया पहनेगी खादी, नाम होगा भारत देश का' खास तौर से पसन्द की गई। 
      संध्या श्रीवास्तव की रचना 'सतयुग में मैं थी अहिल्या जब छला इन्द्र ने मुझको, पाषाण बनी युग-युग तक मैंने अभिशाप को झेला।' को विशेष प्रशंसा मिली। साहित्यकार सिद्धनाथ शर्मा ने अपनी रचना 'उब कर हालात से तुम जान देने क्यूँ चले हो, फूल सी बेटी का बोलो क्या करोगे।' पढ़कर वर्तमान में चल रहे हालात पर चोट की। 
       मध्यप्रदेश से वरिष्ठ साहित्यकार हरिओम माहोरे ने अपनी रचना 'ख़ुदा तू हर मकाँ कच्चा बना देता तो अच्छा था, यहाँ हर आदमी सच्चा बना देता तो अच्छा था।' सुनाया। साहित्यकार कमल नयन मधुकर ने अपनी रचना 'इसने शहर में किसी क्रान्तिकारी का भाषण सुन लिया है, अथवा किसी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने का टिकट पा लिया है।' के जरिए वर्तमान परिदृश्य में चल रहे राजनीतिक दलों पर शब्दों का बाण चलाया।
       चंद्रकांत सिंह की रचना 'ईहा मोर मनवा ना लागे सुनु सजना, चला चली गउवां की ओर।' को भोजपुरी श्रोताओं ने सराहा। अंत में करुणा सिंह ने अपनी रचना 'नफरत सभी के दिल में भरने लगे हैं लोग, अपनी लगाई आग में जलने लगे हैं लोग।' सुनाकर काव्य-रस गोष्ठी का समापन किया।