शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में बरगदाही की पूजा धूूमधाम से हुई


वेबवार्ता/मोहन वर्मा 
लखनऊ। शहर व ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में बरगदाही की पूजा धूूमधाम से हुई। वट सावित्री पूजन को लेकर लखनऊ सहित आसपास के जिलाें के मंदिरों मे सुबह से ही सुहागिनों की भीड़ दिखाई पड़ी। वट वृक्ष के समीप तो कहीं कहीं इतनी भीड़ रही कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ही नहीं हो पाया और संक्रमण की भी परवाह नहीं हुई। 


क्या है वट सावित्री पूजा -
      ज्येष्ठ मास कि अमावस्या के दिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। इस व्रत को वट सावित्री व्रत के नाम से जाना जाता है। कई जगह ये उपवास ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन भी रखे जाने का विधान है। इस दिन वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। व्रत रखने वालियां मां सावित्री और सत्यवान की पवित्र कथा को भी सुनना जरूरी मानते हैं।
      वट सावित्री व्रत कथा के अनुसार सावित्री के पति अल्पायु थे, देव ऋषि नारद ने सावित्री से प्रसन्न होकर उससे वरदान देने को कहा था तो सावित्री ने अपने पति कि लम्बी उम्र का वरदान माँगा तो देवर्षि नारद ने कहा कि तुम्हारा पति अल्पायु है अतः कोई दूसरा वर मांग लो। पर सावित्री ने कहा- मैं एक हिन्दू नारी हूं, पति को एक ही बार चुनती हूं। इसी समय सत्यवान के सिर में अत्यधिक पीड़ा होने लगी। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है। सत्यवान की आत्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं। उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। तब सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मैं भी वही रहूंगी। यही मेरा पत्नी धर्म है। सावित्री के मुख से यह उत्तर सुन कर यमराज बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सावित्री को से 3 वर मांगने को कहा और बोले तुम कौन-कौन से तीन वर लोगी। तब सावित्री ने सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी, ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा एवं अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा। सावित्री के यह तीनों वरदान सुनने के बाद यमराज ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा- तथास्तु! ऐसा ही होगा। तब सावित्री पुन: उसी वट वृक्ष के पास लौट आई। जहां सत्यवान का मृत शरीर पड़ा था। तभी सत्यवान के मृत शरीर में जीवन का संचार हुआ। इस प्रकार सावित्री ने अपने पतिव्रता व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति को पुन: जीवित करवाया बल्कि सास-ससुर को नेत्र ज्योति प्रदान करते हुए उनके खोये हुए राज्य को फिर से वापस दिलवाया।
       तभी से वट सावित्री अमावस्या के दिन वट वृक्ष की पूजा-अर्चना करने का विधान है। मान्यता है कि यह व्रत करने से सौभाग्यवती महिलाओं की मनोकामना पूर्ण होती है और उनका सौभाग्य अखंड रहता है।
      लॉकडाउन के बीच में अमावस्या में अधिकांश क्षेत्रों में कई सुहागिन महिलाओं ने बरगद की टहनी को घर में गमले में लगा कर पूजा की। कोरोना के कहर और लॉकडाउन के बीच कई महिलाओं ने अपने घरों में ही यह पूजा संपन्न की। कुछ मोहल्लों व ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं ने घर के नजदीक लगे वट व्रक्ष की पूजा की। कोरोना महामारी के चलते महिलाएं मास्क लगाए हुए भी दिखीऔर सोशल डिस्टेंसिग का भी ध्यान रखा। पूजा के कारण भीड़ की सम्भावना के चलते महिला पुलिस कर्मी भी मुस्तैद रहीं।