कोविड 19 और रमजान : रमजान की खासियत “जीओ और जीने दो” पर आधारित है - सईद अहमद


वेबवार्ता(न्यूज़ एजेंसी)/सईद अहमद/अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 25 अप्रैल।मुसलमानों सबसे पाक (पवित्र) महीना रमजान है। इस माह में रोजाना की पांच वक़्त की इबादत के साथ साथ रोजा, तराबीह, एत्काफ और कुरआन की तिलावत भी की जाती है। साथ ही दान (खैरात, जकात) का भी हुक्म है।  रमजान की खासियत “जीओ और जीने दो” पर आधारित है। इस माह में स्वयं सब्र (संयम) करते हुए अपने से कमजोर, रिश्तेदार, पड़ोसी और समाज के अन्य गरीब वर्ग के घर खुशहाली लाना है। इस माह में जिसके पास खाने को नहीं होता है उसकी भूख को महसूस करने का नाम रोजा है। रोजे की फजीलते (महत्तायें और उपयोगिताएं) तो बेसुमार है। रोजा सिर्फ भूख और प्यास से रोकने का नाम नहीं है, बल्कि रोजा हर बुराई से रुकने का नाम है। इसीलिये इसमें नाक, कान, मुंह और आँख का भी रोजा होता है। रोजे में किसी भी बुराई को करना देखना और सुनना भी मना होता है। हद तक अपनी इच्छा और सुकून के लिए किसी खुशबू को भी उपयोग करना मना है। 


लेकिन इस साल यह रमजान दुनिया भर में फैली महामारी कोविड 19 के समय  पर आया है। हिन्दुस्तान सहित अधिकाँश देशों में सोशल डिस्टेंस या फिजिकल डिस्टेंस को मेंटेन किया जा रहा है। इसके लिए हुकूमतों को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा। वैज्ञानिक खोज में जुटे है। ऐसे में कोविड 19 से शारीरिक दूरी सबसे बेहतरीन बचाव है। सरकारें सलाह दे रहीं है कि शारीरिक दूरी बना कर रखे। जबकि रमजान में रोजे के दौरान अपनी बीबी (धर्म पत्नी अर्थात अर्धांग्नी) से भी शारीरिक मिलन की मनाही होती है। जब अपनी अर्धांग्नी से मिलन की रुकावट है तो फिर लोगों के नजदीक रहने से तो परहेज करना ही होगा। सरकारें सलाह दे रही है कि बेजरूरत घर से बाहर न निकले। इस्लाम में रोजे के दौरान बेजरूरत बाहर या बाज़ार घूमने से मना फरमाया गया है। नीयत (इच्छाओं) को वश में करने की हिदायत दी गई है। बेजरूरत नाक का उपयोग करके तमाम पसंदीदा व्यंजनों की खुशबू से परहेज का हुक्म है। खाने और पीने के साथ बेजरूरत मुंह से न बोलने की भी हिदायत दी गई है। सरकारें भी कह रही है कि बिना मास्क के बाहर न निकले। अब आप समझिये हम सबका रब (ईश्वर) हमसे क्या चाहता है? रब जो चाहता है हमको भी वही करना है। जिससे रब राजी हो सके।
इस महामारी के दौरान लाक डाउन सरकारों को करना पड़ा है। जिस कारण कारोबार सभी बंद हो गए है। दिहाड़ी मजदूर, रोज के कमाने खाने वाले और गरीबों की हालत बद से बदत्तर हो गई है। सरकारें कुछ करने का प्रयास कर रहीं है। लेकिन सरकारों के प्रयास ऊँट के मुंह में जीरा साबित हो रहे है। सरकारें जनता से अपील कर रहीं है कि इस काम में जनता सहयोग करे। मुसलमानों के लिए इस दौरान रमजान का आना आफत को रहमत में बदल सकता है। अगर वह इस माह में किये जाने वाले दान (खैरात, जकात, फितरा) का प्रबंधन कर जरूरतमंदों तक पहुंचा सके।इसके साथ ही एक और अहम मौका मुसलामानों के हाथ लगा है, वह है इबादत और दुआ का।  सरकारें परेशान है, वैज्ञानिकों को कोई उचित रास्ता नहीं सूझ रहा। ऐसे में ईश्वर को मनाना ही एक मात्र रास्ता बचता है। सभी लोग ईश्वर से प्रार्थना कर रहे है। लेकिन मुसलामानों के पास सुनहरा अवसर है रमजान का महीना। इस्लामी मान्यता के अनुसार इस माह में नेकी करने वाले बंदे के गुनाह ईश्वर माफ़ कर देता है। और प्रत्येक नेकी का सबाब (पूण्य) 70 गुना देता है। हम सब सारे आलम के लिए पैगाम लाने वाले हजरत मोहम्मद के अनुयायी है। अतैव सम्पूर्ण मानव जाति सहित दुनिया की प्रत्येक मखलूक (जीव, जिन्न इत्यादि) के हित की दुआंए करे। इस महामारी से निजात और टालने की दुआ करें। इसको मुझ सहित सारे आलम के लिए हिदायत का जरिया बनाने की दुआ करें। ईश्वर से रो-रोकर दुआएं मांगे।  ईश्वर अपने बन्दों से 70 माओं से ज्यादा प्यार करता है। वह अपने गुनाहगार से गुनाहगार बंदे को माफ़ कर देता है। बशर्ते हम सच्चे दिल से अपनी गलतियों की माफ़ी मांगे। 
सरकारों के लिए जहां कोविड 19  महामारी का जरिया है वहीँ मुसलमान इस महामारी से निजात का जरिया बन सकते है। सिर्फ आपको सच्चा मुसलमान होने का सबूत देना होगा। आपको सरकार की जारी की गई गाइड लाइन का पालन करना होगा। आपकी जरूरतों को देखते हुए कुछ क्षेत्रों में सरकार लाक डाउन की छूट देगी। आप इस छूट का नाजायज फायदा न उठायें। अपने घरों पर नमाज़ कायम करें। अर्थात खुद पढ़े और बच्चों से भी पढवाएं। वक़्त निकालकर कुरआन पाक का भी पाठ करे। चाहे थोडा पढ़े, लेकिन समझकर पढ़े। अगर तर्जुमा न हो तो इंटरनेट पर तर्जुमे का कुरआन मौजूद है उसको पढ़ ले। अगर पढना न आता हो तो यू ट्यूब पर सुन ले। बिना समझे कुरआन पढना मंत्रोच्चारण से ज्यादा कुछ नहीं है। जिसका रूहानी फायदा तो होता है लेकिन अमली फायदे से वंचित रह जाते है। इसलिए कुरआन को ठहर ठहर कर और समझकर पढने का हुक्म है। 
इसके साथ ही तराबीह का एहतमाम खुद करें। कुरआन पाक आपको याद नहीं है तो जैसे रोज पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ते है वैसे ही दो-दो रकात करके पढ़ लीजिये। हम सबका रब रहीम और करीम है। अर्थात रहम और करम करने वाला है। वह हमारे अमल को क़ुबूल फरमाएगा। 
इस माह में एत्काफ का भी हुक्म है, मगर वक़्त न होने की वजह से लोग एत्काफ में नहीं बैठते थे। एत्काफ का मतलब है अल्लाह की रजा के लिए एकांत में बैठकर इबादत करना। अब आप लाक डाउन की वजह से कहीं बाहर तो जा नहीं रहे होंगे, इसलिए आपके पास वक़्त ही वक़्त है तो एत्काफ का एहतिमाम कीजिये। 
हम सबका रब इबादतों में हुई भूल और बाकी अमल में हुई भूलों को माफ़ फरमाए। (आमीन) इन टूटी फूटी इबादतों को क़ुबूल अता फरमाए। (आमीन) ये हम सबके रब सारे आलम में अमन चैन और एकता कायम करे। (आमीन) सारी दुनिया को अन्य बीमारियों सहित इस महामारी से निजात दे। (आमीन) इस महामारी को हम सबके लिए हिदायत का जरिया बना दे। (आमीन)