शर्मनाक : अपने ही संस्थान में राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी द्वारा स्थापित भारतेंदु बाबू की प्रतिमा क्षतिग्रस्त और बदहाल - शुभम कुमार सेठ

- 24 जनवरी 2020 की रात अराजकतत्वों ने तोड़ डाली थी भारतेंदु की प्रतिमा, प्राचार्य ने बताया था कि ठंड की वजह से टूटी प्रतिमा - शुभम कुमार सेठ



वेबवार्ता(न्यूज़ एजेंसी)/अजय कुमार वर्मा
वाराणसी 5 जून। आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक भारतेंदु हरिशचंद्र ने 1866 ई. में जब श्री हरीशचंद्र महाविद्यालय की नींव रखी तो उन्होंने कभी सोचा भी नही होगा की उनके द्वारा बनाये गए  विद्यालय में एक दिन उनकी ही घोर उपेक्षा होगी। 
      अब इससे शर्मनाक और दुखद भला क्या हो सकता है की महज पांच छात्रों के साथ शिक्षा की अलख जगाने व समाज को शिक्षत करने की संकल्पना से महाविद्यालय की स्थापना करने वाले युगपुरुष भारतेंदु हरीशचंद्र जी की प्रतिमा आज उन्ही के महाविद्यालय में महीनों से क्षतिग्रस्त और बदहाल स्थिति में पड़ी हुई है और शासन, जिला प्रशासन, महाविद्यालय प्रशासन का किसी का इस पर ध्यान नही है। प्रतिमा के ऊपर बना आवरण भी क्षत-विक्षत और फटेहाल होकर प्रतिमा पर लटक कर मानो भारतेंदु जी का उपहास कर रहा है की देखिए आपके महाविद्यालय में ही आज आपकी कैसी दुर्दशा हो गयी है कि कोई पूछने वाला तक नही है।



      दरअसल 15 अप्रैल 2017 को महाविद्यालय के छात्रसंघ भवन के सामने विद्यालय के संस्थापक भारतेंदु हरीशचंद्र की प्रतिमा छात्रसंघ प्रतिनिधि शुभम कुमार सेठ के साथ राज्यमंत्री नीलकंठ तिवारी ने स्थापित की थी। 24 जनवरी 2020 की रात असमाजिक तत्वों ने महाविद्यालय प्रशासन के सहयोग से भारतेंदु की प्रतिमा तोड़ डाली जिससे प्रतिमा के मुख और अन्य अंग क्षत- विक्षत और टूट गए। प्राचार्य ने उसके बाद भी यह नही माना कि किसी ने उसे तोड़ा है। उन्होंने कहा कि ठंड की वजह से प्रतिमा टूट गयी। जबकि एक अंधा व्यक्ति भी बता सकता है कि प्रतिमा ठंड से नही बल्कि किसी व्यक्ति के प्रहार से टूटी है। हालांकि प्रतिमा जैसे भी टूटी हो पर उसे उसी हालत में महज कुछ मसाला लगाकर लिपापोती कर छोड़ना कहा तक उचित है। इस समय हालत यह है कि प्रतिमा तो क्षतिग्रस्त है उसके ऊपर लगाया गया आवरण भी टूट कर प्रतिमा के ऊपर लटक रहा है। अपने ही विद्यालय में संस्थापक के प्रतिमा की यह बदहाल तस्वीर वाकई पीड़ादायक है लेकिन विडंबना की किसी जिम्मेदार की संवेदना इसको देखकर नही जग रही है।
    छात्रसंघ के पूर्व महामंत्री ने बताया कि हम छात्रों का दल इस संदर्भ में कई बार प्राचार्य के पास गए लेकिन दुःख इस बात का है कि प्राचार्य ने सिवाय आश्वासन के कुछ नही किया। ऐसा लगता है कि प्राचार्य ओमप्रकाश सिंह का मन ही नही की भारतेंदु हरीशचंद्र जी की प्रतिमा महाविद्यालय में रहे।
    या ऐसा भी हो सकता है कि जिस तरह से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्वामी विवेकानन्द के आदर्शो व विचारधारा को नकारते हुये वहां के विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा असमाजिक तत्वों को सह देकर स्वामी विवेकानन्द जी के प्रतिमा को तोड़वा दिया गया था। उसी प्रकार प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के श्री हरीशचंद्र पी. जी. कालेज में  महाविद्यालय प्रशासन के मिलीभगत से भारतेंदु हरीशचंद्र जी की प्रतिमा तोड़कर क्षतिग्रस्त करा दिया गया।