प्रदेश में उद्योग धंधों की खस्ता हालत में प्रवासी मजदूर कैसे रुकेंगे- सुनील सिंह


वेबवार्ता(न्यूज़ एजेंसी)/अजय कुमार वर्मा
लखनऊ 30 जून। कोरोना संकट के दौरान लाखों प्रवासी कामगारों ने यह सोच कर घरों का रुख किया कि वे अपने लोगों के बीच रहकर कुछ न कुछ करके जीवन-यापन कर लेंगे। लेकिन  रोजगार के सीमित अवसरों के बीच 'कुछ न कुछ' भी तलाशना उनके लिए भारी पड़ रहा है। अकुशल मजदूरों के लिए दिहाड़ी तो कुशल या अर्द्धकुशल कामगारों के लिए रोजगार के सीमित अवसर परेशानी का सबब बन गए। बीमारू प्रदेश की सूची में शामिल इस राज्य में पहले से ही उद्योग-धंधों का अभाव है। जो कल-कारखाने यहां चल भी रहे हैं, वे अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहीं कर रहे। पहले से ही राज्य की हालत रोजगार के मामले में बदतर है। प्रदेश को इस हाल में पहुंचाने का श्रेय सपा सरकार और बीएसपी को भी जाता है जिसने इस प्रदेश की हालत बत्तर कर दी है।
      कानून-व्यवस्था के बिगड़ने की वजह से बड़े व्यवसायियों ने यहां से थोड़ा बहुत कारोबार था उसे समेट लिया। परिणाम यह हुआ कोशिश के बाद भी निवेशकर्ताओं ने प्रदेश का रुख नहीं किया। राज्य के सभी इंडस्ट्रियल एरिया इसके गवाह हैं। इस परिस्थिति में केवल मनरेगा या फिर निर्माण योजनाओं के सहारे आखिरकार इतनी बड़ी संख्या में रोजगार कैसे बने। नतीजतन प्रवासियों को शीघ्र रोजगार मिलने में संशय होने लगा और वे न चाहते हुए भी पुन: लौटने का मन बनाने लगे। राज्य सरकार ने स्किल मैपिंग करवाया लेकिन इन्हें तत्काल रोजगार तो तब मिल सकेगा जब उन्हें यहां खपाने लायक स्थिति हो।
        "प्रवासी कामगार तो यहां तभी रुकेंगे जब उन्हें तुरंत यानी आज से ही कुछ काम मिल जाए। सरकार की जो योजनाएं हैं, उनसे उन्हें अस्थाई काम मिल रहा है जिस पर उन्हें भरोसा नहीं हो रहा। इसलिए मजबूरी में और बेमन से ही लोग फिर बाहर जा रहे हैं। सरकार ने इस संबंध में जो नीति बनाई है वह व्यावहारिक नहीं है."। "आखिरकार कोई आदमी, जिसे काम करना है वह कितने दिन इंतजार करेगा."।
         सरकार ने कहा है कि जो लोग आए हैं उनके स्किल के आधार पर उद्योग लगाए जाएं, ऐसा तो नहीं होता. लेबर की काबिलियत के अनुसार तो उद्योग लगेगा नहीं. ऐसा लगता है सरकार  प्रवासी मजदूरों को पलायन रोकने  में असफल साबित हो रही है।